कम्मा (तेलुगु: కమ్మ) या कम्मावारु एक सामाजिक समुदाय है जो ज्यादातर दक्षिण भारतीय राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में पाया जाता है। वर्ष 1881 में कम्मा जाति की जनसंख्या 795,732 थी। 1921 की जनगणना के अनुसार आंध्रप्रदेश की जनसंख्या में उनका हिस्सा 4.0% का था और तमिलनाडु एवं कर्नाटक में वे एक बड़ी संख्या में मौजूद थे। पिछली सदी के अंतिम दशकों में इनकी एक बड़ी तादाद दुनिया के अन्य हिस्सों विशेषकर अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में प्रवासित हो गयी।
उत्पत्ति
"कम्मा" शब्द और कम्मा के नाम से जाने जाने वाले सामाजिक समुदाय की उत्पत्ति के बारे में कई अवधारणाएं मौजूद हैं लेकिन कोई भी निर्णायक नहीं है।
कम्बोज/कम्भोज/पल्लव मूल
कुछ इतिहासकारों का मत था कि कम्मा नाम संभवतः कम्भोज से लिया गया है। अवध बिहारी लाल अवस्थी की टिप्पणी इस प्रकार है: हम दक्षिण भारत की जातियों में काम्भी, कम्मा, कुम्भी आदि को पाते हैं। संभवतः दक्षिण भारत में एक कम्बोज देश भी रहा होगा। गरुड़ पुराण में अश्मक, पुलिंद, जिमुता, नरराष्ट्रा, लता और कार्नाटा देशों के आस-पास एक कम्भोज साम्राज्य/रियासत के बारे में बताया गया है, साथ ही विशेष रूप से हमें यह भी बताता है कि कम्बोज के हिस्से भारत के दक्षिणी भाग में रहते थे।
पुलिंद अश्मक जिमुता नरराष्ट्रा निवासिनः
कार्नाटा कम्बोज घटा दक्षिणपथवासिनः
बौद्ध मूल
एक सिद्धांत यह है कि कृष्णा नदी की घाटी के बौद्ध प्रधान इलाकों में रहने वाले लोगों को यह नाम कम्मा (पाली में) या कर्मा (संस्कृत में) के थेरावदा बौद्ध विचार से प्राप्त हुआ था। इस क्षेत्र को कभी कम्माराष्ट्रम/कम्मारत्तम/कम्मानाडु के रूप में जाना जाता था जो पल्लवों, पूर्वी चालुक्यों और चोलों के नियंत्रण में था। कम्मानाडु के उल्लेख वाले शिलालेख तीसरी सदी सी.ई. के बाद से उपलब्ध हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार कम्मा मौर्य काल से ही अस्तित्व में थे। एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि कंबोडिया के अधिकांश लोग भी थेरावदा बौद्ध हैं। कंबोडिया वह देश है जिसकी स्थापना कम्बोज महाजनपद के लोगों ने की थी।
कुर्मी मूल
कम्मा जाति के एक अन्य मूल का अनुमान इस रूप में लगाया जाता है: गंगा के मैदानी इलाकों के बौद्ध कुर्मी पुष्यमित्र शुंग के अत्याचार से बचने के लिए बड़ी संख्या में कृष्णा नदी के डेल्टा क्षेत्र में प्रवासित हो गए थे (184 बीसीई). इस उर्वर क्षेत्र में धरणीकोटा, भट्टीप्रोलू, चन्दावोलु आदि में बौद्ध धर्म पहले से फल-फूल रहा था। इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया है कि संस्कृत शब्द कुर्मी/कुर्म बाद के वर्षों में कम्मा बन गया होगा. कम्माराष्ट्रम शब्द का पहला रिकॉर्ड इक्ष्वाकु राजा मधारीपुत्र पुरुषदत्त (तीसरी शताब्दी सीई) के जग्गय्यापेटा शिलालेख में मिलता है। कम्माराष्ट्रम का विस्तार कृष्णा नदी से लेकर कन्दुकुर (प्रकाशम डीटी.) तक था। अगला रिकॉर्ड पल्लव राजा कुमार विष्णु द्वितीय का था जिसके बाद पूर्वी चालुक्य राजा मांगी युवराज (627-696 सीई) का जिक्र आता है। इसके बाद का शिलालेख तेलुगु चोलों/चोड़ों का और काकतीय राजवंश में कम्मानाडु का उल्लेख मिलता है। इस क्षेत्र को पल्लव साम्राज्य के कारण पल्लावानाडु/ पलानाडु / पलनाडु के रूप में भी जाना जाता है।
यह विभिन्न स्रोतों और इतिहास से स्पष्ट है कि कम्मा और कुर्मी समुदायों की उत्पत्ति कम्बोज समुदाय से हुई है। कम्बोज / कम्बोह को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पाकिस्तान में चौधरी भी कहा जाता है। इसी प्रकार दक्षिण भारत में कम्मा को चौधरी भी कहा जाता है।
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