कम्बोज और काम्बोज (Kamboj) लोग भारत और पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र के एक जातीय समुदाय हैं जो प्राचीन काम्बोज (Kambojas) जनजाति के आधुनिक प्रतिनिधि हैं। प्राचीन काम्बोज जनजाति भारत-आर्यों की एक प्रसिद्ध क्षत्रिय जनजाति थी। कम्बोज लोग उत्तरी भारत और पाकिस्तान में परंपरागत रूप से कृषि समुदाय हैं। मुख्य रूप से हिन्दू हैं, सिख भी हैं और कुछ मुसलमान / मुस्लिम भी। कम्बोज अब पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश और पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में रहते हैं।
वर्तमान में भारत में रहने वाले कम्बोज जनजाति के लोग कम्बोज और काम्बोज शब्द को उपनाम के रूप में उपयोग करते हैं वहीं पाकिस्तान में रहने वाले मुस्लिम कंबोह (पंजाबी: ਕੰਬੋ, English: Kamboh, उर्दू: کمبوہ) शब्द को उपनाम के रूप में उपयोग करते हैं।
मुस्लिम कम्बोज
मुस्लिम कम्बोज लोग पंजाब के मलेरकोटला शहर जो आज भारतीय पंजाब का एकमात्र मुस्लिम बहुल कस्बा है में रहते हैं। भारत के उत्तर प्रदेश के गंगा-जमुना दोआब क्षेत्र में विशेष रूप से मारेरा शहर में बहुत से मुस्लिम कम्बोज लोग पाए जाते हैं, और खुद को ज़ुबैरी (Zuberis) कहते हैं। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर क्षेत्र में बहुत से मुस्लिम कम्बोज लोग पाए जाते हैं।
भारत में इस्लाम के प्रारंभिक वर्षों के दौरान काम्बोज कबीले के समूहों में से एक ने शेख बहाउद्दीन जकरिया सुहरावर्दी (मुल्तान के) और उनके बेटे शेख सदुद्दीन के उदाहरण पर इस्लाम को गले लगा लिया। कुछ कम्बोज जैसे शाहबाज खान कम्बोह ने उत्तरी भारत में तुर्की और मुग़ल साम्राज्य के दौरान प्रमुख सैन्य और नागरिक पदों पर काम किया। इतिहासकार एम अथार अली ने कहा कि 'भारतीय मुसलमानों के बीच सय्यद और कम्बोह लोग विशेष रूप से मुगल शासन के दौरान उच्च सैन्य और नागरिक पदों के लिए अनुकूल थे'।
भारतीय साहित्य / ग्रंथों में कम्बोज
कम्बोजों का उल्लेख भारत के अनेकों संस्कृत एवं पालि ग्रन्थों में हुआ है, जैसे सामवेद, अथर्ववेद, रामायण, महाभारत, पुराण, कौटिल्य अर्थशास्त्र, निरुक्त, जातक कथाओं, जैन आगमों, प्राचीन व्याकरण ग्रन्थों, एवं नाटकों में।
- वाल्मीकि रामायण, महाभारत, राजतरंगिणी, कालिदासकृत रघुवंश आदि में कम्बोज की स्थिति और इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
- प्राचीन संस्कृत एवं पालि साहित्य में कम्बोज और गांधार का नाम साथ-साथ आता है। ऋग्वेद में गांधार के उत्कृष्ट ऊन और कम्बोज के कंबलों का उल्लेख मिलता है।
- महाभारत के अनुसार कम्बोज में उत्तम घोड़े और अखरोट मिलते हैं।
- महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कम्बोजों को भी परास्त किया था।
- कर्ण ने कम्बोज के राजपुर नामक नगर पहुंचकर कम्बोजों को हराया था।
- महाभारत में कम्बोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन, सुदक्षिण, कमठ और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार कम्बोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व तक यह गणराज्य स्थापित था।
- मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।
- प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनी ने 'कम्बोजाल्लुक' सूत्र से (अष्टाध्यायी 4, 1, 173) में इस जनपद के बारे में उल्लेख किया था। पाणिनी गांधार प्रदेश के निवासी थे।
- पतंजलि ने भी महाभाष्य में कम्बोज का उल्लेख किया है।
- इतिहासकार कल्हण के अनुसार कश्मीर नरेश ललितादित्य ने उत्तरापथ के अन्य कई देशों के साथ कम्बोज को भी जीता था।
काम्बोज प्रवासी
काम्बोज अथवा कम्बोज प्राचीन भारत में निवास करने वाली जाति थी। पाकिस्तान तथा अफ़गानिस्तान के विस्तृत क्षेत्र में बसे हुए लोग काम्बोज कहलाते थे।
- प्राचीन समय में कई बाहरी जातियों ने भारतीय भूमि में प्रवेश किया, जैसे- शक, कम्बोज, तुषर, पवन आदि।
- शक उस देश के रहने वाले थे, जो पुराने समय में 'सीस्तान' और आजकल 'दक्षिणी ईरान' तथा 'उज्बेकिस्तान' कहलाता है।
- पनव योन टापू निवासी थे, जिसे अब यूनान कहा जाता है।
- इन सब जातियों के लोग आर्य ही थे, और उस समय हमारे तथा उनके धर्म संस्कारों में भी कोई खास बड़ा अन्तर नहीं था। लेकिन ठण्डे देशों के ये लड़ाके हमारे यहां के शूर वीरों से अधिक जल्लाद होते थे।
काम्बोज देश का परिचय
कम्बोज या काम्बोज से निम्नलिखित भौगोलिक क्षेत्रों का बोध होता है-
- काम्बोज जनपद - प्राचीन भारत के १६ महाजनपदों में से एक महाजनपद
- कम्बोडिया देश - इसका प्राचीन भारतीय नाम भी 'कम्बोज' है।
काम्बोज प्राचीन भारत के १६ महाजनपदों में से एक था। इसका उल्लेख पाणिनी के अष्टाध्यायी में १५ शक्तिशाली जनपदों में से एक के रूप में भी मिलता है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु मे १६ महाजनपदों में भी कम्बोज का कई बार उल्लेख हुआ है - ये गांधारों के समीपवर्ती थे। इनमें कभी निकट संबंध भी रहा होगा, क्योंकि अनेक स्थानों पर गांधार और काम्बोज का नाम साथ साथ आता है। इसका क्षेत्र आधुनुक उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिलता है। राजपुर, द्वारका तथा Kapishi इनके प्रमुख नगर थे। इसका उल्लेख इरानी प्राचीन लेखों में भी मिलता है जिसमें इसे राजा कम्बीजेस के प्रदेश से जोड़ा जाता है।
- प्राचीन वैदिक साहित्य में काम्बोज देश या यहाँ के निवासी काम्बोजों के विषय में कई उल्लेख हैं जिनसे ज्ञात होता है कि काम्बोज देश का विस्तार उत्तर में कश्मीर से हिंदूकुश तक था। वंश ब्राह्मण में काम्बोज के औपमन्यव नामक आचार्य का उल्लेख है।
- शतपथ ब्राह्मण के एक स्थल से ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरी लोगों अर्थात उत्तरी कुरुओं की तथा कुरु-पांचालों की बोली समान और शुद्ध मानी जाती थी।
- वाल्मीकि-रामायण में काम्बोज, वाल्हीक और वनायु देशों को श्रेष्ठ घोड़ों के लिये उत्तम देश बताया है, जो इस प्रकार है:
काम्बोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै:
-वाल्मीकि-रामायण बाल0 6,22 - महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही काम्बोजों को भी परास्त किया था-
गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन: दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:
-महाभारत सभा0 27,23। महाभारत शांति0 207,43; - महाभारत (महाभारत/ शांति0 207,43) और राजतरंगिणी (राजतरंगिणी4,163-165) में काम्बोज की स्थिति उत्तरापथ में बताई गई है।
- महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर काम्बोजों को जीता, जिससे राजपुर काम्बोज का एक नगर सिद्ध होता है-
'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'
-महाभारत द्रोण0 4,5 - कालिदास ने रघुवंश में रघु के द्वारा काम्बोजों की पराजय का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है कि :
काम्बोजा: समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान् परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता:
-वाल्मीकि-रामायण बाल0 6,22
इस उद्धरण में कालिदास ने काम्बोज देश में अखरोट वृक्षों का जो वर्णन किया है वह बहुत समीचीन है। इससे भी इस देश की स्थिति कश्मीर के आस पास प्रतीत होती हैं। - चीनी यात्री हुएन-सांग ने भी अपनी भारत यात्रा के दोरान काम्बोज में किसी राजपुर नगर का उल्लेख किया था। (युवानच्वांग, भाग 1, पृ0 284))
- महाभारत में काम्बोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।
- कौटिल्य अर्थशास्त्र में काम्बोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व यहां गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।
कम्बोज की स्थिति :
- कम्बोज देश का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। इसके दो प्रमुख नगर थे राजपुर और नंदीपुर। राजपुर को आजकल राजौरी कहा जाता है।
- पाकिस्तान का हजारा जिला भी कम्बोज के अंतर्गत ही था। कम्बोज के पास ही गांधार जनपद था।
- पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र ही गांधार राज्य के अंतर्गत आता था।
- गांधार के दो प्रमुख नगर थे- पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला।
- तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म खूब फला-फूला, लेकिन खलीफाओं के आक्रमण ने इसे नष्ट कर दिया।
- कम्बोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण-पश्चिम के पुंछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार कम्बोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है।
- आधुनिक मान्यता के अनुसार कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा कम्बोज था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी हैं। बदख्शां अफगानिस्तान में हिन्दूकुश पर्वत का निकटवर्ती प्रदेश है और पामीर का पठार हिन्दूकुश और हिमालय की पहाड़ियों के बीच का स्थान है।
- कनिंघम ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'एंशेंट जियोग्राफी ऑव इंडिया' में राजपुर का अभिज्ञान दक्षिण-पश्चिम कश्मीर के राजौरी नामक नगर (जिला पुंछ, कश्मीर) के साथ किया है। यहां नंदीनगर नामक एक और प्रसिद्ध नगर था। सिकंदर के आक्रमण के समय कम्बोज प्रदेश की सीमा के अंतर्गत उरशा (पाकिस्तानी जिला हजारा) और अभिसार (कश्मीर का जिला पुंछ) नामक छोटे-छोटे राज्य बसे हुए थे।
- जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल, कंधार, बल्ख, वाखान, बगराम, पामीर, बदख्शां, पेशावर, स्वात, चारसद्दा आदि हैं, उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुंभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था।
काम्बोज देश का परिचय:
कम्बोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित प्राचीन भारतीय जनपद था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण पश्चिम के पुँछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है। प्राचीन संस्कृत एवं पाली साहित्य में कम्बोज और गांधार का नाम प्राय: साथ-साथ आता है। जिस प्रकार गांधार के उत्कृष्ट ऊन का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है (१,१२६) उसी प्रकार कम्बोज के कंबलों का उल्लेख यास्क के निरुक्त में हुआ है (२, २)। वास्तव में यास्क ने 'कम्बोज' शब्द की व्युत्पत्ति ही 'सुंदर कंबलों का उपभोग करनेवाले' या विकल्प में सुंदर भोजन करनेवाले लोग-इस प्रकार की है। गांधार और कम्बोज इन दोनों जनपदों के अभिन्न संबंध की परंपरा से ही इनका सान्निध्य सिद्ध हुआ है। गांधार अफगानिस्तान (कंदहार) का संवर्ती प्रदेश था और इसी के पड़ोस में पूर्व की ओर कम्बोज की स्थिति थी।
वाल्मीकि रामायण में कम्बोज का वातहीक और वनायु जनपदों के साथ वर्णन है और इन देशों में उत्पन्न श्रेष्ठ काले घोड़ों से अयोध्या नगरी को भरी पूरी बताया गया है (बाल. ६, २२)। महाभारत में अर्जुन की दिग्विजय के प्रसंग में परमकांबोज का लोह और ऋषिक जनपदों के साथ उल्लेख है (सभा. २७, २५)। (ऋषिक यूची का रूपांतरण जान पड़ता है। यूची जाति का निवासस्थन दक्षिण-पश्चिम चीन या चीनी तुर्किस्तान के अंतर्गत था। प्रसिद्ध बौद्ध सम्राट् कनिष्क का रक्तसंबंध इसी जाति के कुशान नामक कबीले से था।) द्रोणपर्व में सात्यकि द्वारा कांबोजों, यवनों, शकों, किरातों और बर्बरों आदि की दुर्मद सेना को हराने और उनके मुंडित मस्तकों और लंबी दाढ़ियों का चित्रमय उल्लेख (१९९, ४५-४८)-हे राजन्, सात्यकि ने आपकी (धृतराष्ट्र की) सेना का संहार करते हुए हजारों कांबोजों, शकों, शबरों, किरातों और बर्बरों के शवों से रणभूमि को पाठकर वहाँ मांस और रुधिर की नदी बहा दी थी। उन दस्युओं के, शिरस्त्राणों से युक्त मुँडित और लंबी दाढ़ियोंवाले सिरों से रणभूमि पंखहीन पक्षियों से भरी हुई सी दिखाई दे रही थी। महाभारत के युद्ध में काबोजों ने कौरवों का साथ दिया था। यह द्रष्टव्य है कि कांबोजादि को आकृति संबंधी जिन विशेषताओं का वर्णनमहाभारत के इस प्रसंग में हैं वे आज भी इस प्रदेश के निवासियों में विद्यमान हैं। महाभारत में कांबोजों के राजपुर नामक नगर का भी उल्लेख है जिसे कर्ण ने जीता था (द्रोण. ४, ५)।
कनिंघम ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'एंशेंट जियोग्रफी ऑव इंडिया' (पृ. १४२) में राजपुर का अभिज्ञान दक्षिण-पश्चिम कश्मीर के राजौरी नामक नगर (जिला पुँछ, कश्मीर) के साथ किया है। इस प्रकारकम्बोज देश की अवस्थिति का ज्ञान हमें प्राय: निश्चित रूप से हो जाता है। राइस डेविड्स ने इस प्रदेश की पूर्वबौद्धकालीन द्वारका नामक नगरी का उल्लेख किया है। लूडर्स के अभिलेखों (संख्या १७६, ४१२) में कम्बोज जनपद के एक दूसरे स्थान नंदिनगर का भी उल्लेख है जिसकी स्थिति का ठीक पता नहीं।
प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि ने, जो स्वयं कम्बोज के सहवर्ती प्रदेश के निवासी थे 'कम्बोजाल्लुक' सूत्र से (अष्टाध्यायी ४, १, १७३) इस जनपद के बारे में अपनी जानकारी प्रकट की है। पतंजलि ने भी महाभाष्य में कम्बोज का उल्लेख किया है।
सिकंदर के आक्रमण के समय (३२७ ई.पू.) कम्बोज प्रदेश की सीमा के अंतर्गत उरशा (जिला हाजारा) और अभिसार (जिला पुँछ) नामक छोटे-छोटे राज्य बसे हुए थे।
पालि ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय में भारत के १६ महाजनपदों में कम्बोज की भी गणना की गई है (१,२१३; ४,२५२-२५६-२६१)। अशोक के अभिलेखों में कांबोजों का उल्लेख, सीमावर्ती यवनों, नाभकों, नाभपंक्तियों, भोजपितिनकों और गंधारों आदि के साथ किया गया है (शिलालेख १३)। इस धर्मलिपि से ज्ञात होता है कि यद्यपि कम्बोज जनपद अशोक का सीमावर्ती पांत था तथापि वहाँ भी उसके शासन कापूर्ण रूप से प्रचलन था। विद्वानों का मत है कि शाहबाजगढ़ी (जिला पेशावर) और मानसेहरा (जिला हजारा) में प्राप्त अभिलेखों से, अशोक के समय में (मश्य तृतीय शताब्दी ई.पू.), क्रमश: गांधार और कम्बोज जनपदों की स्थिति का ज्ञान होता है।
महाभारत के वर्णन में कम्बोज देश के अनार्य रीति रिवाजों का आभास मिलता है। भीष्म. ९,६५ में कांबोजों को म्लेच्छजातीय बताया गया है। मनु ने भी कांबोजों को दस्यु नाम से अभिहित किया है तथा उन्हें म्लेच्छ भाषा बोलनेवाला बताया है (मनुस्मृति १०, ४४-४५)। मनु की ही भाँति निरुक्तकार यास्क ने भी कांबोजों की बोली को आर्य भाषा से भिन्न कहा है और इस तथ्य के प्रमाण में उन्होंने उदाहरण भी दिया है (११-२)। इसी प्रकार भूरिदत्त जातक में भी कांबोजों के अनार्याचरण तथा अनार्य धर्म का उल्लेख है।
चीनी यात्री युवानच्वांग ने (मध्य ७वीं सदी ई.) भी राजपुर के संवर्ती प्रदेश के निवासियों को भारत के आर्यजनों की सांस्कृतिक परंपरा के बहिर्गत माना है और उन्हें उत्तर-पश्चिम की सीमावर्ती असभ्य जातियों के अंतर्गत बताया है। युवानच्वांग ने राजपुर को चीनी भाषा में 'होलोशिपुलो' लिखा है। किंतु इसके साथ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कम्बोज में बहुत प्राचीन काल से ही आर्यों की बस्तियाँ बिद्यमान थीं। इसका स्पष्ट निर्देश वंशब्राह्मण के उस उल्लेख से होता है जिसमें कांबोज औपमन्यव नामक आचार्य का प्रसंग है। यह आचार्य उपमन्यु गोत्र में उत्पन्न, मद्रगार के शष्य और कम्बोज देश के निवासी थे। कीथ का अनुमान है कि इस प्रसंग में वर्णित औपमन्यव कांबोज और उनके गुरु मद्रगार के नामों से उत्तरमद्र और कम्बोज देशों के सन्निकट संबंध का आभास मिलता है। पालि ग्रंथ मज्झिमनिकाय से भी कम्बोज में आर्य संस्कृति की विद्यमानता के बारे में सूचना मिलती है।
महाभारत में कम्बोज देश के कमठ और सुदक्षिण नामक राजाओं के नाम मिलते हैं-(सभा. ४, २२-उद्योग. १६६, १)। किंतु कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि चतुर्थ शताब्दी ई.पू. में कांबोज में संघ या गणराज्य की स्थापना भी की गई थी। अर्थशास्त्र (पृ. ३१८) में कांबोजों को वार्ताशस्त्रोपजीवी संघ अर्थात् कृषि और शस्त्रों से जीविका अर्जन करनेवाले संघ की संज्ञा दी गई है। महा. ७, ८९, ३८ में भी 'कबोजानां च ये गणा:', ऐसा वर्णन मिलता है।
संस्कृत के काव्य ग्रंथों में भी कम्बोज के विषय में अनेक उल्लेख मिलते हैं; उदाहरणार्थ, कालिदास ने रघुवंश में रघु की दिग्विजययात्रा के प्रसंग में कांबोजों पर उनकी विजय का सुंदर वर्णन इस प्रकार किया है-(रघु. ४, ६९)-'रघु के प्रभाव को सहने में असमर्थ कम्बोज-निवासियों को अपने देश के अखरोट के वृक्षों, जिनसे रघु की सेना के मदमत्त हाथियों की शृंखलाएँ बाँधी गई थीं, की भाँति ही विनत होना पड़ा।' यह द्रष्टव्य है कि कालिदास के समय में भी आज ही की तरह भारत के इस प्रदेश के अखरोट प्रसिद्ध थे।
इतिहासकार कल्हण के अनुसार कश्मीर नरेश ललितादित्य ने उत्तरापथ के अन्य कई देशों के साथ कम्बोज को भी जीता था। उसके वर्णन में भी कम्बोज की परंपरा से प्रसिद्ध घोड़ों का उल्लेख (४, १६३)। इस वर्णन से यह भी प्रमाणित होता है कि भारतीय इतिहास के प्राय: मध्यकाल (११वीं-१२वीं सदी ई.) तक कम्बोज देश के नाम का प्रचलन था तथा इसकी सीमाएँ भी प्राय: पूर्ववत् ही थीं, किंतु यह जान पड़ता है कि तत्पश्चात् धीरे-धीरे इस जनपद का विलय कश्मीर राज्य में हो जाने से इसकी पृथक सत्ता का अंत हो गया और इसके साथ ही इसका नाम भी विस्मृति के गर्त में जा पड़ा। फिर भी अभी तक कम्बोज के नाम की स्मृति काफिरिस्तान के निकटवर्ती प्रदेश के कुछ कबीलों के नामों, जैसे कम्बोजी, कमोज और कामोजे आदि में सुरक्षित है।
नेपाली परम्परा में कम्बोज:
नेपाली परंपरा में कम्बोज देश के नाम से तिब्बत का अभिधान किया जाता रहा है (देखिए, फ़ूशे : इकोनोग्राफ़ीक बुद्धीक, पृ. १३४), किंतु उपर्युक्त तथ्यों से यह भली भाँति प्रमाणित होता है कि इस जनपद की स्थिति प्राचीन भारत की उत्तरी पश्चिमी सीमा के निकट ही रही होगी। यह तथ्य उनकी बोली से भी, जो ईरानी भाषा की ही एक शाखा थी, सिद्ध है
कम्बोज लोग (पंजाबी: कबाब, हिंदी: कम्बोज, उर्दू: ک ... بوہ) कंबो के रूप में भी जाना जाता है (पंजाबी: कबाब, हिंदी: कम्बो, उर्दू: ک وہ)। कम्बोज को जाति नाम या उपनाम या उप-जाति के बदले अंतिम नाम या वर्तमान में भारत में रहने वाले कई कम्बोज लोगों द्वारा गेट्रा नाम के रूप में उपयोग किया जाता है। पाकिस्तान में रहने वाले उनके मुस्लिम काउंटर पार्ट्स ज्यादातर गोत्रा नाम के बजाय अंतिम नाम कंबोह का उपयोग करते हैं। भारत के उत्तर प्रदेश के डोआब क्षेत्र में विशेष रूप से मारेरा शहर में एक बहुत से मुस्लिम कंबोह पाए जाते हैं, और खुद को जुबेरिस कहते हैं। , ने कहा कि भारतीय और साथ ही साथ ईरानी सम्बन्ध दोनों थे और प्राचीन संस्कृत ग्रंथों और अभिलेखों में उल्लेख किया गया था। कम्बोजा आयरन एज इंडिया का एक भारतीय-यूरोपीय क्षत्रिय जनजाति था, जिसका उल्लेख अक्सर (बाद में वैदिक) संस्कृत और पाली साहित्य में किया गया था, जो महाभारत और समकालीन वेदंगा साहित्य (लगभग 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से) में अपनी पहली उपस्थिति बनाते थे। उनके कम्बोजा साम्राज्य हिंदुुकुश के दोनों किनारों पर स्थित थे (कम्बोजा स्थान देखें)।
कम्बोज नाम से भारत में अभी भी एक जाति महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश और पंजाब में रहती है। इस जाति के मूल देवता शिव हैं। इसे कहीं-कहीं कंबोह, कंबुज और कंबोह भी कहते हैं। अब इस जाति के लोग सिख भी हैं, हिन्दू भी और कुछ मुसलमान भी। जैसे कश्मीर के ज्यादातर गुर्जर और ब्राह्मण अब खुद को मुसलमान कहते हैं, लेकिन ये सभी गांधार और कम्बोज निवासी ही हैं और इनका मूल धर्म 'शैव' है।
कम्बोजों को मलेच्छ इसलिए कहा जाने लगा था, क्योंकि वे वैदिक धर्म को छोड़कर तरह-तरह के देवी और देवताओं को मानने लगे थे, लेकिन वे मूलत: थे सभी शैव। आंध्र, शक, पुलिन्द, यवन, बाह्मलीक तथा आभीर लोगों को भी मलेच्छ माना जाता था। यह सभी वेद विरुद्ध कर्म करने लगे थे इसलिए इन सभी को असुरों की ओर से मान लिया गया था।
कंबोडिया को भी पहले कंबुज कहा जाता था, जो कि कभी अखंड भारत का हिस्सा था। कंबोडिया की प्राचीन दंतकथाओं के अनुसार कंबोडिया की नींव 'आर्यदेश' के राजा कंबु स्वयांभुव ने डाली थी। लेकिन हम कंबोडिया नहीं, भारतीय राज्य कम्बोज की बात कर रहे हैं, जो प्राचीन संगठित भारत के 16 जनपदों में से एक था। kambojमहाभारत में प्राग्ज्योतिष (असम), किंपुरुष (नेपाल), त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कम्बोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं।> > बाद में महाभारत के अनुसार भारत को मुख्यत: 16 जनपदों में स्थापित किया गया। जैन 'हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत में 18 महाराज्य थे। पालि साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ 'अंगुत्तरनिकाय' में भगवान बुद्ध से पहले 16 महाजनपदों का नामोल्लेख मिलता है। इन 16 जनपदों में से एक जनपद का नाम कम्बोज था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार कम्बोज जनपद सम्राट अशोक महान का सीमावर्ती प्रांत था। भारतीय जनपदों में राज्याणि, दोरज्जाणि और गणरायाणि शासन था अर्थात राजा का, दो राजाओं का और जनता का शासन था।
- राम के काल 5114 ईसा पूर्व में नौ प्रमुख महाजनपद थे जिसके अंतर्गत उप जनपद होते थे। ये नौ इस प्रकार हैं- 1.मगध, 2.अंग (बिहार), 3.अवन्ति (उज्जैन), 4.अनूप (नर्मदा तट पर महिष्मती), 5.सूरसेन (मथुरा), 6.धनीप (राजस्थान), 7.पांडय (तमिल), 8. विन्ध्य (मध्यप्रदेश) और 9.मलय (मलावार)।
- 16 महाजनपदों के नाम : 1. कुरु, 2. पंचाल, 3. शूरसेन, 4. वत्स, 5. कोशल, 6. मल्ल, 7. काशी, 8. अंग, 9. मगध, 10. वृज्जि, 11. चेदि, 12. मत्स्य, 13. अश्मक, 14. अवंति, 15. गांधार और 16. कम्बोज। उक्त 16 महाजनपदों के अंतर्गत छोटे जनपद भी होते थे।
- कम्बोज का अर्थ- कम्बोज का अर्थ सुंदर कंबलों का उपभोग करने वाले लोग। दूसरा सुंदर भोजन करने वाले लोग।
- कम्बोज जाति : कम्बोज नाम से भारत में अभी भी एक जाति महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश और पंजाब में रहती है। इस जाति के मूल देवता शिव हैं। इसे कहीं-कहीं कंबोह, कंबुज और कंबोह भी कहते हैं। अब इस जाति के लोग सिख भी हैं, हिन्दू भी और कुछ मुसलमान भी। जैसे कश्मीर के ज्यादातर गुर्जर और ब्राह्मण अब खुद को मुसलमान कहते हैं, लेकिन ये सभी गांधार और कम्बोज निवासी ही हैं और इनका मूल धर्म 'शैव' है। कम्बोजों को मलेच्छ इसलिए कहा जाने लगा था, क्योंकि वे वैदिक धर्म को छोड़कर तरह-तरह के देवी और देवताओं को मानने लगे थे, लेकिन वे मूलत: थे सभी शैव। आंध्र, शक, पुलिन्द, यवन, बाह्मलीक तथा आभीर लोगों को भी मलेच्छ माना जाता था। यह सभी वेद विरुद्ध कर्म करने लगे थे इसलिए इन सभी को असुरों की ओर से मान लिया गया था।
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