कम्बोज - भारत का एक प्राचीन देश


कम्बोज - भारत का एक प्राचीन देश

कम्बोज या काम्बोज से निम्नलिखित भौगोलिक क्षेत्रों का बोध होता है-

  • काम्बोज जनपद - प्राचीन भारत के १६ महाजनपदों में से एक महाजनपद
  • कम्बोडिया देश - इसका प्राचीन भारतीय नाम भी 'कम्बोज' है।

काम्बोज जनपद (कम्बोज देश) प्राचीन भारत के १६ महाजनपदों में से एक था। इसका उल्लेख पाणिनी के अष्टाध्यायी में १५ शक्तिशाली जनपदों में से एक के रूप में भी मिलता है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु मे १६ महाजनपदों में भी कम्बोज का कई बार उल्लेख हुआ है - ये गांधारों के समीपवर्ती थे। इनमें कभी निकट संबंध भी रहा होगा, क्योंकि अनेक स्थानों पर गांधार और काम्बोज का नाम साथ साथ आता है। इसका क्षेत्र आधुनुक उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिलता है। राजपुर, द्वारका तथा Kapishi इनके प्रमुख नगर थे। इसका उल्लेख इरानी प्राचीन लेखों में भी मिलता है जिसमें इसे राजा कम्बीजेस के प्रदेश से जोड़ा जाता है।

  • प्राचीन वैदिक साहित्य में काम्बोज देश या यहाँ के निवासी काम्बोजों के विषय में कई उल्लेख हैं जिनसे ज्ञात होता है कि काम्बोज देश का विस्तार उत्तर में कश्मीर से हिंदूकुश तक था। वंश ब्राह्मण में काम्बोज के औपमन्यव नामक आचार्य का उल्लेख है।
  • शतपथ ब्राह्मण के एक स्थल से ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरी लोगों अर्थात उत्तरी कुरुओं की तथा कुरु-पांचालों की बोली समान और शुद्ध मानी जाती थी।
  • वाल्मीकि-रामायण में काम्बोज, वाल्हीक और वनायु देशों को श्रेष्ठ घोड़ों के लिये उत्तम देश बताया है, जो इस प्रकार है:
    काम्बोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै:
    -वाल्मीकि-रामायण बाल0 6,22
  • महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही काम्बोजों को भी परास्त किया था-
    गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन: दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:
    -महाभारत सभा0 27,23। महाभारत शांति0 207,43;
  • महाभारत (महाभारत/ शांति0 207,43) और राजतरंगिणी (राजतरंगिणी4,163-165) में काम्बोज की स्थिति उत्तरापथ में बताई गई है।
  • महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर काम्बोजों को जीता, जिससे राजपुर काम्बोज का एक नगर सिद्ध होता है-
    'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'
    -महाभारत द्रोण0 4,5
  • कालिदास ने रघुवंश में रघु के द्वारा काम्बोजों की पराजय का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है कि :
    काम्बोजा: समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान् परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता:
    -वाल्मीकि-रामायण बाल0 6,22
    इस उद्धरण में कालिदास ने काम्बोज देश में अखरोट वृक्षों का जो वर्णन किया है वह बहुत समीचीन है। इससे भी इस देश की स्थिति कश्मीर के आस पास प्रतीत होती हैं।
  • चीनी यात्री हुएन-सांग ने भी अपनी भारत यात्रा के दोरान काम्बोज में किसी राजपुर नगर का उल्लेख किया था। (युवानच्वांग, भाग 1, पृ0 284))
  • महाभारत में काम्बोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।
  • कौटिल्य अर्थशास्त्र में काम्बोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व यहां गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।

कम्बोज देश की स्थिति :

  • कम्बोज देश का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। इसके दो प्रमुख नगर थे राजपुर और नंदीपुर। राजपुर को आजकल राजौरी कहा जाता है।
  • पाकिस्तान का हजारा जिला भी कम्बोज के अंतर्गत ही था। कम्बोज के पास ही गांधार जनपद था।
  • पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र ही गांधार राज्य के अंतर्गत आता था।
  • गांधार के दो प्रमुख नगर थे- पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला।
  • तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म खूब फला-फूला, लेकिन ‍खलीफाओं के आक्रमण ने इसे नष्ट कर दिया।
  • कम्बोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण-पश्चिम के पुंछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार कम्बोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है।
  • आ‍धुनिक मान्यता के अनुसार कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा कम्बोज था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी हैं। बदख्शां अफगानिस्तान में हिन्दूकुश पर्वत का निकटवर्ती प्रदेश है और पामीर का पठार हिन्दूकुश और हिमालय की पहाड़ियों के बीच का स्थान है।
  • कनिंघम ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'एंशेंट जियोग्राफी ऑव इंडिया' में राजपुर का अभिज्ञान दक्षिण-पश्चिम कश्मीर के राजौरी नामक नगर (जिला पुंछ, कश्मीर) के साथ किया है। यहां नंदीनगर नामक एक और प्रसिद्ध नगर था। सिकंदर के आक्रमण के समय कम्बोज प्रदेश की सीमा के अंतर्गत उरशा (पाकिस्तानी जिला हजारा) और अभिसार (कश्मीर का जिला पुंछ) नामक छोटे-छोटे राज्य बसे हुए थे।
  • जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल, कंधार, बल्ख, वाखान, बगराम, पामीर, बदख्शां, पेशावर, स्वात, चारसद्दा आदि हैं, उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुंभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था।

काम्बोज देश का परिचय:

कम्बोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित प्राचीन भारतीय जनपद था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण पश्चिम के पुँछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है। प्राचीन संस्कृत एवं पाली साहित्य में कम्बोज और गांधार का नाम प्राय: साथ-साथ आता है। जिस प्रकार गांधार के उत्कृष्ट ऊन का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है (१,१२६) उसी प्रकार कम्बोज के कंबलों का उल्लेख यास्क के निरुक्त में हुआ है (२, २)। वास्तव में यास्क ने 'कम्बोज' शब्द की व्युत्पत्ति ही 'सुंदर कंबलों का उपभोग करनेवाले' या विकल्प में सुंदर भोजन करनेवाले लोग-इस प्रकार की है। गांधार और कम्बोज इन दोनों जनपदों के अभिन्न संबंध की परंपरा से ही इनका सान्निध्य सिद्ध हुआ है। गांधार अफगानिस्तान (कंदहार) का संवर्ती प्रदेश था और इसी के पड़ोस में पूर्व की ओर कम्बोज की स्थिति थी।

वाल्मीकि रामायण में कम्बोज का वातहीक और वनायु जनपदों के साथ वर्णन है और इन देशों में उत्पन्न श्रेष्ठ काले घोड़ों से अयोध्या नगरी को भरी पूरी बताया गया है (बाल. ६, २२)। महाभारत में अर्जुन की दिग्विजय के प्रसंग में परमकांबोज का लोह और ऋषिक जनपदों के साथ उल्लेख है (सभा. २७, २५)। (ऋषिक यूची का रूपांतरण जान पड़ता है। यूची जाति का निवासस्थन दक्षिण-पश्चिम चीन या चीनी तुर्किस्तान के अंतर्गत था। प्रसिद्ध बौद्ध सम्राट् कनिष्क का रक्तसंबंध इसी जाति के कुशान नामक कबीले से था।) द्रोणपर्व में सात्यकि द्वारा कांबोजों, यवनों, शकों, किरातों और बर्बरों आदि की दुर्मद सेना को हराने और उनके मुंडित मस्तकों और लंबी दाढ़ियों का चित्रमय उल्लेख (१९९, ४५-४८)-हे राजन्, सात्यकि ने आपकी (धृतराष्ट्र की) सेना का संहार करते हुए हजारों कांबोजों, शकों, शबरों, किरातों और बर्बरों के शवों से रणभूमि को पाठकर वहाँ मांस और रुधिर की नदी बहा दी थी। उन दस्युओं के, शिरस्त्राणों से युक्त मुँडित और लंबी दाढ़ियोंवाले सिरों से रणभूमि पंखहीन पक्षियों से भरी हुई सी दिखाई दे रही थी। महाभारत के युद्ध में काबोजों ने कौरवों का साथ दिया था। यह द्रष्टव्य है कि कांबोजादि को आकृति संबंधी जिन विशेषताओं का वर्णनमहाभारत के इस प्रसंग में हैं वे आज भी इस प्रदेश के निवासियों में विद्यमान हैं। महाभारत में कांबोजों के राजपुर नामक नगर का भी उल्लेख है जिसे कर्ण ने जीता था (द्रोण. ४, ५)।

कनिंघम ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'एंशेंट जियोग्रफी ऑव इंडिया' (पृ. १४२) में राजपुर का अभिज्ञान दक्षिण-पश्चिम कश्मीर के राजौरी नामक नगर (जिला पुँछ, कश्मीर) के साथ किया है। इस प्रकारकम्बोज देश की अवस्थिति का ज्ञान हमें प्राय: निश्चित रूप से हो जाता है। राइस डेविड्स ने इस प्रदेश की पूर्वबौद्धकालीन द्वारका नामक नगरी का उल्लेख किया है। लूडर्स के अभिलेखों (संख्या १७६, ४१२) में कम्बोज जनपद के एक दूसरे स्थान नंदिनगर का भी उल्लेख है जिसकी स्थिति का ठीक पता नहीं।

प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि ने, जो स्वयं कम्बोज के सहवर्ती प्रदेश के निवासी थे 'कम्बोजाल्लुक' सूत्र से (अष्टाध्यायी ४, १, १७३) इस जनपद के बारे में अपनी जानकारी प्रकट की है। पतंजलि ने भी महाभाष्य में कम्बोज का उल्लेख किया है।

सिकंदर के आक्रमण के समय (३२७ ई.पू.) कम्बोज प्रदेश की सीमा के अंतर्गत उरशा (जिला हाजारा) और अभिसार (जिला पुँछ) नामक छोटे-छोटे राज्य बसे हुए थे।

पालि ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय में भारत के १६ महाजनपदों में कम्बोज की भी गणना की गई है (१,२१३; ४,२५२-२५६-२६१)। अशोक के अभिलेखों में कांबोजों का उल्लेख, सीमावर्ती यवनों, नाभकों, नाभपंक्तियों, भोजपितिनकों और गंधारों आदि के साथ किया गया है (शिलालेख १३)। इस धर्मलिपि से ज्ञात होता है कि यद्यपि कम्बोज जनपद अशोक का सीमावर्ती पांत था तथापि वहाँ भी उसके शासन कापूर्ण रूप से प्रचलन था। विद्वानों का मत है कि शाहबाजगढ़ी (जिला पेशावर) और मानसेहरा (जिला हजारा) में प्राप्त अभिलेखों से, अशोक के समय में (मश्य तृतीय शताब्दी ई.पू.), क्रमश: गांधार और कम्बोज जनपदों की स्थिति का ज्ञान होता है।

महाभारत के वर्णन में कम्बोज देश के अनार्य रीति रिवाजों का आभास मिलता है। भीष्म. ९,६५ में कांबोजों को म्लेच्छजातीय बताया गया है। मनु ने भी कांबोजों को दस्यु नाम से अभिहित किया है तथा उन्हें म्लेच्छ भाषा बोलनेवाला बताया है (मनुस्मृति १०, ४४-४५)। मनु की ही भाँति निरुक्तकार यास्क ने भी कांबोजों की बोली को आर्य भाषा से भिन्न कहा है और इस तथ्य के प्रमाण में उन्होंने उदाहरण भी दिया है (११-२)। इसी प्रकार भूरिदत्त जातक में भी कांबोजों के अनार्याचरण तथा अनार्य धर्म का उल्लेख है।

चीनी यात्री युवानच्वांग ने (मध्य ७वीं सदी ई.) भी राजपुर के संवर्ती प्रदेश के निवासियों को भारत के आर्यजनों की सांस्कृतिक परंपरा के बहिर्गत माना है और उन्हें उत्तर-पश्चिम की सीमावर्ती असभ्य जातियों के अंतर्गत बताया है। युवानच्वांग ने राजपुर को चीनी भाषा में 'होलोशिपुलो' लिखा है। किंतु इसके साथ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कम्बोज में बहुत प्राचीन काल से ही आर्यों की बस्तियाँ बिद्यमान थीं। इसका स्पष्ट निर्देश वंशब्राह्मण के उस उल्लेख से होता है जिसमें कांबोज औपमन्यव नामक आचार्य का प्रसंग है। यह आचार्य उपमन्यु गोत्र में उत्पन्न, मद्रगार के शष्य और कम्बोज देश के निवासी थे। कीथ का अनुमान है कि इस प्रसंग में वर्णित औपमन्यव कांबोज और उनके गुरु मद्रगार के नामों से उत्तरमद्र और कम्बोज देशों के सन्निकट संबंध का आभास मिलता है। पालि ग्रंथ मज्झिमनिकाय से भी कम्बोज में आर्य संस्कृति की विद्यमानता के बारे में सूचना मिलती है।

महाभारत में कम्बोज देश के कमठ और सुदक्षिण नामक राजाओं के नाम मिलते हैं-(सभा. ४, २२-उद्योग. १६६, १)। किंतु कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि चतुर्थ शताब्दी ई.पू. में कांबोज में संघ या गणराज्य की स्थापना भी की गई थी। अर्थशास्त्र (पृ. ३१८) में कांबोजों को वार्ताशस्त्रोपजीवी संघ अर्थात् कृषि और शस्त्रों से जीविका अर्जन करनेवाले संघ की संज्ञा दी गई है। महा. ७, ८९, ३८ में भी 'कबोजानां च ये गणा:', ऐसा वर्णन मिलता है।

संस्कृत के काव्य ग्रंथों में भी कम्बोज के विषय में अनेक उल्लेख मिलते हैं; उदाहरणार्थ, कालिदास ने रघुवंश में रघु की दिग्विजययात्रा के प्रसंग में कांबोजों पर उनकी विजय का सुंदर वर्णन इस प्रकार किया है-(रघु. ४, ६९)-'रघु के प्रभाव को सहने में असमर्थ कम्बोज-निवासियों को अपने देश के अखरोट के वृक्षों, जिनसे रघु की सेना के मदमत्त हाथियों की शृंखलाएँ बाँधी गई थीं, की भाँति ही विनत होना पड़ा।' यह द्रष्टव्य है कि कालिदास के समय में भी आज ही की तरह भारत के इस प्रदेश के अखरोट प्रसिद्ध थे।

इतिहासकार कल्हण के अनुसार कश्मीर नरेश ललितादित्य ने उत्तरापथ के अन्य कई देशों के साथ कम्बोज को भी जीता था। उसके वर्णन में भी कम्बोज की परंपरा से प्रसिद्ध घोड़ों का उल्लेख (४, १६३)। इस वर्णन से यह भी प्रमाणित होता है कि भारतीय इतिहास के प्राय: मध्यकाल (११वीं-१२वीं सदी ई.) तक कम्बोज देश के नाम का प्रचलन था तथा इसकी सीमाएँ भी प्राय: पूर्ववत् ही थीं, किंतु यह जान पड़ता है कि तत्पश्चात् धीरे-धीरे इस जनपद का विलय कश्मीर राज्य में हो जाने से इसकी पृथक सत्ता का अंत हो गया और इसके साथ ही इसका नाम भी विस्मृति के गर्त में जा पड़ा। फिर भी अभी तक कम्बोज के नाम की स्मृति काफिरिस्तान के निकटवर्ती प्रदेश के कुछ कबीलों के नामों, जैसे कम्बोजी, कमोज और कामोजे आदि में सुरक्षित है।

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Deepak Kamboj

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Deepak Kamboj started and conceptualized the powerful interactive platform - KambojSociety.com in September 2002, which today is the biggest and most popular online community portal for Kambojas in the world. He was inspired by the social and community work carried out by his father Shri Nanak Chand Kamboj. He has done research on the history, social aspects, political growth and economical situation of the Kamboj community. Deepak Kamboj is an author of various articles about the history of Kamboj community and people.